श्रावण पूर्णिमा 2025: तिथि, कथा, मुहूर्त और महत्व | Shravana Purnima 2025 Date and Significance

श्रावण पूर्णिमा 2025 की तिथि, रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त और धार्मिक महत्व जानें। उपाकर्म और पूजन विधि की पूरी जानकारी पढ़ें।

श्रावण मास हिंदू पंचांग का अत्यंत पावन महीना माना जाता है। इस महीने में भगवान शिव और श्रीविष्णु की विशेष पूजा का विधान है। श्रावण मास का अंतिम दिन पूर्णिमा तिथि के रूप में मनाया जाता है, जिसे श्रावण पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन का धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व बहुत गहरा है। वर्ष 2025 में श्रावण पूर्णिमा का पर्व कब मनाया जाएगा? इसका क्या महत्व है? आइए विस्तार से जानते हैं।

श्रावण पूर्णिमा 2025 की तिथि और मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, 2025 में श्रावण पूर्णिमा का पर्व 9 अगस्त 2025, शनिवार को मनाया जाएगा।

पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 8 अगस्त 2025, रात्रि 10:45 बजे

पूर्णिमा तिथि समाप्त: 9 अगस्त 2025, रात 8:12 बजे तक

इस दिन चंद्र दर्शन, स्नान, दान और व्रत का विशेष महत्व है।

श्रावण पूर्णिमा का महत्व :

श्रावण पूर्णिमा का पर्व कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण है:

क्या आपने कभी महसूस किया है कि कुछ दिन हवा में ही भक्ति और प्यार की खुशबू लिए होते हैं? ऐसा ही एक दिन है श्रावण पूर्णिमा। साल 2025 में यह दिन न केवल एक त्योहार है, बल्कि एक मौका है अपने रिश्तों को फिर से जीने का, अपनी जड़ों से जुड़ने का और उन खूबसूरत पलों को याद करने का जो जीवन को अनमोल बनाते हैं।

1. राखी का त्यौहार : सिर्फ़ रेशम नहीं, भावनाओं का बंधन! ❤️

एक धागा, पर कितने वादे! भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक, रक्षाबंधन। यह सिर्फ़ एक धागा नहीं, बल्कि वो अटूट विश्वास है जो बहन अपने भाई की कलाई पर बांधती है और भाई अपने जीवन भर की रक्षा का वचन देता है। क्या आपको याद है बचपन की वो लड़ाइयाँ और फिर एक-दूसरे के लिए चॉकलेट चुराना? रक्षाबंधन वही मीठी यादें ताज़ा कर देता है। इस साल 2025 में, आइए इस धागे की पवित्रता को फिर से महसूस करें और अपने भाई-बहनों को याद दिलाएँ कि वे हमारे लिए कितने ख़ास हैं।

2. श्रावण पूर्णिमा : एक पवित्र स्नान और नई शुरुआत 💧

श्रावण का महीना भगवान शिव को समर्पित होता है और पूर्णिमा इस महीने का चरम है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व है। मान्यता है कि ऐसा करने से न केवल पाप धुलते हैं, बल्कि मन भी शांत और निर्मल हो जाता है। यह सिर्फ़ धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि अपने भीतर की नकारात्मकता को धोकर एक नई, सकारात्मक शुरुआत करने का प्रतीक है। तो, इस पूर्णिमा पर, पानी में डुबकी लगाने के साथ-साथ, अपने मन को भी शुद्ध करने का संकल्प लें।

3. सत्यनारायण कथा : घर में खुशियाँ और समृद्धि का आगमन ✨

श्रावण पूर्णिमा पर भगवान विष्णु की पूजा और सत्यनारायण कथा का पाठ भी किया जाता है। यह कथा जीवन में सत्य और धर्म के महत्व को बताती है। कथा का पाठ घर में सुख, शांति और समृद्धि लाता है। अक्सर परिवार के सभी सदस्य एक साथ बैठकर इस कथा को सुनते हैं, जिससे न केवल धार्मिक माहौल बनता है, बल्कि परिवार के बीच प्यार और एकता भी बढ़ती है।

4. जनेऊ धारण का महत्व : जब नया जीवन शुरू होता है! 🌿

इस दिन ब्राह्मण और द्विज लोग अपने पुराने जनेऊ (पवित्र धागा) को बदलकर नया जनेऊ धारण करते हैं। यह क्रिया व्यक्ति को अपने कर्तव्यों और संस्कारों का पालन करने की याद दिलाती है। यह सिर्फ़ एक धागा बदलना नहीं है, बल्कि जीवन में एक नए अध्याय की शुरुआत का संकेत है, जहाँ हम अपने मूल्यों और परंपराओं के प्रति और भी ज़्यादा जागरूक होते हैं।

5. प्रकृति का आशीर्वाद और लोक कथाएँ : कहानियों में छिपा जीवन का सार 📖

श्रावण पूर्णिमा सिर्फ़ धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रकृति और लोक कथाओं से भी जुड़ी है। गाँव-गाँव में इस दिन प्रकृति की पूजा होती है, क्योंकि श्रावण के महीने में वर्षा से धरती हरी-भरी हो जाती है। दादी-नानी की कहानियों में इस पूर्णिमा का ज़िक्र अक्सर मिलता है, जहाँ चांद-सितारे भी अपनी कहानियाँ सुनाते हैं। यह दिन हमें याद दिलाता है कि हम प्रकृति का ही एक हिस्सा हैं और हमें इसका सम्मान करना चाहिए।

आध्यात्मिक दृष्टि से महत्व

श्रावण पूर्णिमा आध्यात्मिक साधना के लिए भी श्रेष्ठ मानी जाती है। इस दिन ध्यान, मंत्रजाप और उपवास करने से मनुष्य की मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति होती है।

सावन पूर्णिमा (श्रावण पूर्णिमा) कथा :

सावन पूर्णिमा की पौराणिक कथा

पौराणिक मान्यता के अनुसार, देवताओं और असुरों के बीच हुए समुद्र मंथन से अनेक दिव्य रत्न और अमृत कलश निकले। अमृत कलश को लेकर देवताओं और दानवों में संघर्ष शुरू हो गया। इस दौरान भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लेकर देवताओं को अमृत पिला दिया और उन्हें अमरत्व प्रदान किया।

इसी दिन से देवताओं की शक्ति में वृद्धि हुई और उन्हें असुरों पर विजय मिली। कहते हैं कि यह घटना श्रावण मास की पूर्णिमा को हुई थी। इसीलिए इस दिन देवोपकार, रक्षा और दान का विशेष महत्व माना जाता है।

रक्षाबंधन से जुड़ी कथा

श्रावण पूर्णिमा के दिन ही रक्षाबंधन का पर्व भी मनाया जाता है। पुराणों में वर्णन है कि एक बार देवताओं और असुरों के बीच युद्ध हो रहा था। असुरों के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए देवगुरु बृहस्पति ने देवताओं को रक्षा सूत्र (राखी) बांधा। इस रक्षा सूत्र की शक्ति से देवताओं को बल मिला और वे युद्ध में विजय हुए। तब से इस दिन रक्षा सूत्र बांधने की परंपरा शुरू हुई।

उपाकर्म की कथा

श्रावण पूर्णिमा को ब्राह्मण समाज उपाकर्म (यज्ञोपवीत संस्कार) करते हैं। मान्यता है कि इस दिन ऋषियों ने वेदों का पुनः अध्ययन प्रारंभ किया था, इसलिए इसे अध्ययन और साधना का शुभ दिन माना जाता है।

आइए, इस श्रावण पूर्णिमा 2025 को सिर्फ़ एक दिन की छुट्टी नहीं, बल्कि अपने रिश्तों को संजोने, अपनी परंपराओं को जीने और जीवन की सुंदरता को महसूस करने का एक सुनहरा अवसर मानें। इस पोस्ट को अपने दोस्तों और परिवार के साथ शेयर करें और उन्हें भी इस पावन पर्व का हिस्सा बनने का मौका दें! 🙏

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